वन गमन
कितना विपति भरा पल था,जब राम वन गमन चले गये।
सीता मां संग लखन लाल भी अवधपुरी तज चले गये।।
ऐसा लगता था अवधपुरी निष्प्रभ निष्प्राण हुई जग में।
जग की सब दारुण व्यथा यही,विपदा आयी लेकर संग में।।
जन-जन के मन में व्यथा यही,अब यही अवध वह नहीं रही।
जहां राम बसे थे कण-कण में,क्षण भर पावनता नहीं रही।।
जन-जन के मन की करुण व्यथा जब भरत लाल को ज्ञात हुआ।
वापस रघुवर को लाने का तब भरत भातृ-संकल्प हुआ।।
जिसको जिसको यह ज्ञात हुआ श्री राम प्रभु फिर आयेंगे।
वो भरत लाल से कहने लगे हम भी लेने वन जायेंगे।।
वह दृष्य अनोखा जग का था,पूरी दुनिया हर्षायी थी।
देवों में मातम पसरा था,रावण की करी बुराई थी।।
गुरूवर संग जनकराज को ले जब भरत लाल प्रस्ताव किया।
श्रीराम प्रभु ने जाने से सहर्ष सहज फिर मना किया।।
वो निसचर हीन जगत को कर,फिर रामराज ले आयेंगे।
सब दीन दुःखी अन्त्यज को भी,जग के सम्मुख अपनायेंगे।।
ऐसा वन गमन राष्ट्र हितकारी,मेरे राम सदा ही जायेंगे।
जग की मर्यादा बनी रहे,श्रीराम सदा समझायेंगे।।
डाॅ.राघवेन्द्र शुक्ल
भारतीय थल सेना
04/11/2024